हालिया दौर के उपचुनावों में बीजेपी की करारी शिकस्त के बाद विपक्षी एकता को तो बल मिला ही है लेकिन इसका पॉजिटिव साइड इफेक्ट केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एनडीए कैंप में भी देखने को मिलने लगा है. दरअसल सत्ता में आने के बाद पिछले चार सालों में बीजेपी के कई सहयोगी दलों ने दबे सुर में अपनी 'उपेक्षा' की बात कही. लेकिन राज्य दर राज्य बीजेपी के चुनावी रथ को मिलती कामयाबी के कारण ये चुप रहने के लिए मजबूर हुए.
अमित शाह और उद्धव ठाकरे की मुलाकात
इन सहयोगियों में पहला मुखर विरोध शिवसेना ने यह कहते हुए किया कि वह अगली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी. नतीजतन हाल में महाराष्ट्र के पालघर और भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़े. इनमें बीजेपी, पालघर में जीती लेकिन भंडारा में हारी. पालघर में शिवसेना दूसरे स्थान पर रही. भंडारा में विपक्षी एकता के कारण बीजेपी हार गई. यानी साफतौर पर बीजेपी के लिए संकेत निकले कि यदि शिवसेना-बीजेपी 2019 में अलग-अलग लड़े एवं कांग्रेस-राकांपा साथ-साथ लड़े तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी के बाद लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र में सर्वाधिक 48 सीटें हैं.
नीतीश कुमार के बदलते तेवर
इसी कड़ी में बिहार से भी बीजेपी के सहयोगी अलग सुर अख्तियार करते दिख रहे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने साफतौर पर कह दिया कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार होंगे. जदयू ने तो बाकायदा राज्य की 40 में 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए 15 सीटें बीजेपी के लिए छोड़ दी. वह 2009 लोकसभा चुनाव के गठबंधन फॉर्मूले के आधार पर बिहार में 'बड़े भाई' की भूमिका में दिखना चाहती है, जबकि पार्टी को 2014 में केवल दो सीटें मिलीं. उधर बीजेपी ने अकेले दम पर 22 सीटें जीतीं और लोजपा की छह और रालोसपा की तीन सीटों के साथ एनडीए का आंकड़ा 31 पहुंचा. अब हाल में 14 लोकसभा और विधानसभा सीटों के उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद नीतीश कुमार ने नोटबंदी को परोक्ष रूप से विफल प्रयास बताया.
Source:-ZEENEWS
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अमित शाह और उद्धव ठाकरे की मुलाकात
इन सहयोगियों में पहला मुखर विरोध शिवसेना ने यह कहते हुए किया कि वह अगली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी. नतीजतन हाल में महाराष्ट्र के पालघर और भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़े. इनमें बीजेपी, पालघर में जीती लेकिन भंडारा में हारी. पालघर में शिवसेना दूसरे स्थान पर रही. भंडारा में विपक्षी एकता के कारण बीजेपी हार गई. यानी साफतौर पर बीजेपी के लिए संकेत निकले कि यदि शिवसेना-बीजेपी 2019 में अलग-अलग लड़े एवं कांग्रेस-राकांपा साथ-साथ लड़े तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी के बाद लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र में सर्वाधिक 48 सीटें हैं.
नीतीश कुमार के बदलते तेवर
इसी कड़ी में बिहार से भी बीजेपी के सहयोगी अलग सुर अख्तियार करते दिख रहे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने साफतौर पर कह दिया कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार होंगे. जदयू ने तो बाकायदा राज्य की 40 में 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए 15 सीटें बीजेपी के लिए छोड़ दी. वह 2009 लोकसभा चुनाव के गठबंधन फॉर्मूले के आधार पर बिहार में 'बड़े भाई' की भूमिका में दिखना चाहती है, जबकि पार्टी को 2014 में केवल दो सीटें मिलीं. उधर बीजेपी ने अकेले दम पर 22 सीटें जीतीं और लोजपा की छह और रालोसपा की तीन सीटों के साथ एनडीए का आंकड़ा 31 पहुंचा. अब हाल में 14 लोकसभा और विधानसभा सीटों के उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद नीतीश कुमार ने नोटबंदी को परोक्ष रूप से विफल प्रयास बताया.
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