Featured post

Telugu on-screen character Amit Purohit passes on: Aditi Rao Hydari drives sympathies from South

 Entertainer Amit Purohit, who had highlighted in Telugu and Hindi movies, has passed away as of late. He was most recently seen in Telugu ...

Monday 18 June 2018

नए प्रोडक्ट के लिए जूझ रहा है अरविंद केजरीवाल का पॉलिटिकल स्टार्टअप

नई दिल्‍ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके कैबिनेट सहयोगी छह दिन से राजनिवास पर धरना दे रहे हैं. उनके इस धरने की वैधानिकता पर अब दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सवाल उठा दिए हैं. अदालत ने पूछा है कि अगर यह हड़ताल है तो किसी के घर के भीतर कैसे हो सकती है. इस हड़ताल के चलते अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नीति आयोग में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी नहीं जा सके. हड़ताल के चलते दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का स्वास्थ्य पहले ही गड़बड़ा चुका है.

केजरीवाल का यक्ष प्रश्‍न
यह सवाल अब पुराना पड़ गया है कि अरविंद केजरीवाल यह क्यों कर रहे हैं और इसका हासिल क्या है? केजरीवाल बनाम केंद्र बनाम उपराज्यपाल बनाम अफसरशाही का चक्रव्यूह अब इतना पुराना पड़ गया है कि लोगों को इसकी आदत सी पड़ गई है. और इसी तरह की आदत लोगों को केजरीवाल के धरने और हड़तालों की भी पड़ गई है. इन हड़तालों से अब उस तरह का असर पैदा नहीं होता, जैसा असर 2011 से 2014 के बीच पड़ा करता था. और यही केजरीवाल का नया यक्ष प्रश्न है.

ईमानदारी की अकेली टकसाल
लेकिन दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से लोग केजरीवाल से हड़ताल या परनिंदा की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. परनिंदा की रणनीति को तो आखिरकार खुद केजरीवाल ने अपने ऊपर लगे मानहानि के मुकदमों से तंग आकर छोड़ दिया. उन्होंने एक-एक कर उन सब नेताओं से माफी मांग ली, जिन्हें वे भ्रष्ट कहते थे. इस तरह केजरीवाल के स्टार्टअप का यह दावा जाता रहा कि सियासत में वह ईमानदारी की अकेली टकसाल है. अब उनकी हड़तालों को लेकर भी लोग खासे उत्साहित नहीं हैं. उनके धरने को जनता और मीडिया दोनों में ही न तो पहले जैसी जगह मिल रही है और न पहले जैसी सहानुभूति.

नए इनवेंशन का इंतजार
यही केजरीवाल की विडंबना बन गई है. उनको अब समझ नहीं आ रहा कि जनता का ध्यान कैसे खींचा जाए. उनका स्टार्टअप अब एक नए इनवेंशन का इंतजार कर रहा है. उन्हें कोई ऐसा सियासी प्रोडक्ट लॉन्च करना होगा जो हड़ताल और परनिंदा के उनके पुराने प्रोडक्ट से ज्यादा आकर्षक हो. लेकिन फिलहाल वह यह काम कर नहीं पा रहे हैं. उनकी इस नाकामी की एक वजह यह भी है कि उनके वे सारे साथी हितों के टकराव और केजरीवाल की जिद के कारण एक-एक कर आम आदमी पार्टी से बाहर हो चुके हैं, जिन्होंने कभी इस प्रयोग का सृजन किया था.

देश के तकरीबन हर प्रदेश में आप के संस्थापक सदस्य पार्टी से बाहर हो चुके हैं. ऐसे में नया रास्ता खोजने की जिम्मेदारी अब सिर्फ केजरीवाल के कंधों पर है. पहले उनके पास साथी हुआ करते थे, लेकिन अब सिर्फ अनुचर यानी फॉलोअर बचे हैं. फॉलोअर नेता के जयकारे लगा सकते हैं और भीड़ बन सकते हैं, लेकिन वे अपने नेता को सलाह नहीं दे सकते. उनकी न तो यह फितरत होती है और न ही उनके पास इसकी कोई ट्रेनिंग होती है.

केजरीवाल को अब ऐसे मुद्दे और लहजे की तलाश है जो उन्हें वह पुरानी नैतिक ऊंचाई दे सके, जिसने छह साल पहले उन्हें देश में आशा की किरण के तौर पर पेश किया था. लेकिन देखने में यह आ रहा है कि इस नैतिक ऊंचाई को पाने की तलब जागने के बजाय केजरीवाल आम आदमी पार्टी को भी कांग्रेस, बीजेपी या दूसरे दलों की नई नकल बनाने में जुटे हुए हैं. लेकिन नकल का क्या हासिल है, इसे वह खुद अपने घटते वोट बैंक से समझ सकते हैं.

Source:-ZEENEWS

View More About Our Services:-Mobile Database number Provider and Digital Marketing 

No comments:

Post a Comment